वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग, हार्दिक उल्लास शिविर
१६ सितम्बर २०१८
लैंसडाउन, उत्तराखंड
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"निंदक बाबा बीर हमारा,
बिनहीं कौड़ी बहै बिचारा।
कर्म कोटि के कलमष काटे,
काज सँवारै बिनहीं साटे। (संत दादूदयाल)
प्रसंग:
निंदक हमें क्यों नहीं भाता है?
हमें अपने छवि से इतना मोह क्यों है?
निन्दा क्या है?
अहं का स्त्रोत क्या है?
संत दादू दयाल निंदकों को क्यों पास रखने के लिए कह रहे हैं?
मोह से इतना प्रेम क्यों है?